फुर्सत से।

अमृतांश तिवारी

फुर्सत से।

खुद को बेवजह मुस्कुराते हुए,

मैंने कई बार पाया है,

पर लाख कोशिशों के बाद भी,

मुझे ये समझ नहीं आया है,

कि अकेले जब हर कदम पर,

सिर्फ आवारगी सूझती थी मुझे,

तो फिर तेरी नज़रो में भला कौन सी वो बात थी,

कुछ पन्ने पलटे तो याद आया की,

तेरी और मेरी वो पहली मुलाकात थी।

तू एक कोने में बैठी हुई,

चाय की चुस्कियां लेती हुई,

चश्मे के भीतर से नज़रे झाँकती हुई,

अपने होने का एहसास मुझे कराती हुई,

तुझे देख कर, कुछ देर मै ठहर सा गया,

नहीं मालूम दिन दोगुना या चौगनी रात थी,

कुछ पन्ने पलटे तो याद आया की,

तेरी और मेरी वो पहली मुलाकात थी।

क्लास में आयी वो,

मुझ पर चिल्लाई वो,

फिर खुद ही पछतायी वो,

सॉरी सॉरी गायी वो,

क्योंकि लम्बी उड़ान मै,

ना कोई भाड़े की टैक्सी,

एक तो मै क्यूट,

साला ऊपर से मै सेक्सी।

 

वो बड़ी सी कार में,

स्कूटी पर सवार मै,

लुक देकर निकली वो,

निकली हवा के बहार में,

अचानक, उसकी गाडी रुकी ऐसे,

रुकी जैसे ब्रेक सी,

एक तो मै क्यूट

साला ऊपर से मै सेक्सी।

 

बोली डेट पर चले क्या?

मिले हम गले क्या?

इश्क़ की आग में,

साथ दोनों जले क्या?

मैंने बोला लेमन टी,

उसने बोली पेप्सी,

एक तो मै क्यूट,

साला ऊपर से मै सेक्सी।

 

अब साथ हम बैठे रहते,

टूयनिंग अपनी नहीं बैठी,

मै अपनी अकड़ में रहता,

वो भी सुनो ऐंठी रहती,

मानसून में भी हालत,

हालत सूखे खेत सी,

एक तो मै क्यूट,

साला ऊपर से मै सेक्सी।

 

वो बोले गुडमॉर्निंग,

मै बोलूँ राम राम,

इतने में ही काट जाती,

सुबह सुबह शाम शाम,

फिसली ऐसी ज़िन्दगी,

फिसली जैसे रेत सी

एक तो मै क्यूट

साला ऊपर से मै सेक्सी।

 

उसके दोस्त मुझको नहीं भाते,

उसके साथ हँसते गाते,

हैरानी इस बात पर,

उसको मालूमात ये सारी बाते,

मैंने बोला ठीक है बेबी,

बेबी अब तू देख सी,

एक तो मै क्यूट,

साला ऊपर से मै सेक्सी।

 

अगले दिन बीच बाजार,

उसके यार, मेरे यार,

हम में भी उतना था,

जितना था उनमे प्यार,

हमारी टेबल कैंडल लाइट,

उनकी फ़ीकी फ़ीकी डेट सी,

एक तो मै क्यूट,

साला ऊपर से मै सेक्सी।

 

अलग अलग राहें अपनी,

रिश्ता हुआ वो बदनाम,

गूगल पर सर्च करो अब,

मेरा नाम मेरा काम,

और हम तुम मिल कर साथ बनाये,

अपनी अपनी डेमोक्रेसी,

क्योंकि अब भी हूँ क्यूट मैं,

और अब भी मैं सेक्सी।

मिलना तुझसे इत्तेफाक था,

तेरी मोहब्बत में मै खाक था,

ना चिट्ठी थी, ना डाक था,

आशिक़ मै नापाक था,

अलविदा तुझको कहना था,

ये ज़िल्लत थी, मुझको सहना था,

 

कुछ बाते थी वो रह गुज़र,

जिनके साथ मुझको रहना था,

एक सीख मैंने ली थी तुझसे,

इश्क़ की हर तमीज तुझसे,

बिना सोचे सौंप दी,

मांगी जो हर चीज़ तुझसे

आज खुश मै इन अलफ़ाज़ पर,

जो जुड़ चुके है आज मुझसे,

बो सकूं मै हर जगह,

इंसानियत के बीज खुद से,

 

तूने आवाज़ दी, मै रुक गया,

इंसान था, सो झुक गया,

अब इस बात में कोई शक नहीं,

की आज से तुझे हक़ नहीं,

क्यों फिर भी इतना शोर है,

कि तेरा अब भी मुझ पर ज़ोर है ।

मत पूछो कैसे कैसे थे,

हालात कभी कुछ ऐसे थे,

सीने से लगाए फिरता था,

आँखों में ख्वाब जो पलता था,

खुद की नज़रो में उठता मै,

खुद की नज़रो से गिरता था,

मै इश्क़ ढूँढता फिरता था,

मै इश्क़ ढूँढता फिरता था।

 

कहते जिसमे वफ़ा होती है,

कहते जिसमे नशा होता है,

सीमा ना ही हद होती है,

हर कोई इसी में फँसा होता है,

निकलने के आसार नहीं,

उठ उठ के मै भिड़ता था,

मै इश्क़ ढूँढता फिरता था,

मै इश्क़ ढूँढता फिरता था।

 

एक बार कोई बस हाथ थाम ले,

एक बार कोई बस मेरा नाम ले

जज़्बातो की कदर करे,,

मर्ज़इलाज़ का ना कोई दाम ले,

 

पर गली मोहल्ले घूम घूम कर,

एक परिभाषा प्रचार करे,

आँख बंद कर करे भरोसा,

जिस्म बेच कर प्यार करे।

होती आबरू खतरे में,

मै ही खतरों में घिरता था,

मै इश्क़ ढूँढता फिरता था,

मै इश्क़ ढूँढता फिरता था।

 

कहते जो पवित्र होता है,

जीवन का चलचित्र होता है,

नीलाम हुआ तो समझ में आया,

की कैसा किसका चरित्र होता है,

और उसको सही साबित करने को,

मै लड़ता, मरता, चिढ़ता था,

मै इश्क़ ढूँढता फिरता था,

मै इश्क़ ढूँढता फिरता था।

 

गुज़री रातें कई हज़ार,

पकड़ी दिल ने वो रफ़्तार,

इधर फिरे कभी उधर फिरे,

आकाश चढ़े, पाताल गिरे,

कभी इसके साथ, कभी उसके साथ,

कभी डाल डाल, कभी पात पात,

कभी इसका दिन, कभी उसकी रात,

कभी बाँह बाँह, कभी लात लात,

किसका झूठ, किसकी सच्ची बात,

किसकी जीत और किसकी मात,

जुड़े किसके लब, टूटे किसके दांत,

किसकी पिज़्ज़ा डेट, किसकी डाल भात,

अब तुमको बताऊँ मै सच्ची बात।

 

इश्क़ भूखा है, इश्क़ नंगा है,

हालात का मारा परिंदा है,

किसी के अंदर लाश बना,

किसी की रूह में अब भी ज़िंदा है,

और इन हालतो से मै हूँ वाकिफ,

पर तुमको खोने से डरता हूँ

मै इश्क़ ढूँढता फिरता था,

मै इश्क़ ढूँढता फिरता हूँ।

किसी का छोड़ जाना, किसी को छोड़ जाना,

किसी का तोड़ जाना, किसी को तोड़ जाना,

किसी का ना आना, किसी का लौट जाना,

किसी को मन माना, किसी की चोट जाना,

तो अच्छा नहीं लगा।

 

जो अपने वही पराये, उनको गैर ही गैर भाये,

जब भी मौका आये, हमको ही नोच खाये,

जो परछाई बन कर आये, वो निकले काले साये,

मुझसे मेरे गम लिखवाये, और फिर मेरे ही आंसू गाये,

ये अच्छा नहीं लगा 

 

कभी खुद को संभाले, कभी खुद को हम पाले,

कितने पैंतरे बदले, कितनी बदली चाले,

पार की सड़के, पार किये नाले,

एड़ियों पर दाग काले, पैरो पर गहरे छाले,

ये अच्छा नहीं लगा 

 

मेरी डाल उसकी पात, मेरे कान उसकी बात,

किसी और को उसका हाथ, किसी और को उसका साथ,

मेरी दाल उसकी भात, उसकी जीत मेरी मात,

गुज़रे दिन गुज़री रात, चुभती यादो की बारात

ये अच्छा नहीं लगा 

 

उसकी अकड़ से ठनी, मुझे वक़्त की कमी,

वो हुस्न से सनी, मैं शब्दों का धनी,

उसके नाम सारी जमी, मेरी सांस है थमी,

मेरा खेल इबारत का, उसकी ताश की रमी,

ये अच्छा नहीं लगा 

 

कॉलेज के गलियारों में, पीछे की दीवारों में,

महंगी महंगी कारो में, बदनाम दिशाओ चारो में,

खुशियाँ उस पारो में, देवदास के मारो में,

शिक्षा बिक गयी हज़ारो में, ग्रेड्स के पहाड़ो में,

ये अच्छा नहीं लगा 

 

बचपन में खिलौने ना होना, सोने को बिछौने ना होना,

रात के कपडे सुबह को धोना, क्लास में बैठने को एक कोना,

जेब में जेबखर्चा ना होना, मांगने पर एक ही रोना,

खाने को राशन ना होना, समाज में कोई शाशन ना होना,

ये अच्छा नहीं लगा 

 

बचपन से जवान होना, खुद खुद भगवान होना,

दिल में एक अभिमान होना, लोगो का अरमान होना,

फिर लोगो का शैतान होना, रिश्तो का हैवान होना,

मेरे लिए सबसे अलग, अलग संविधान होना,

ये अच्छा नहीं लगा 

 

शराब शबाब पास में, चरस गांजा साथ में,

इंटरव्यू ताश में, लीला सारी रास में,

दिखावी बाते खास में, मोटी रकम की आस में,

नौकरी की तलाश में, भविष्य सर्वनाश में,

ये अच्छा नहीं लगा 

 

उजड़ती डोलिया, उतरती चोलियां,

छोटी छोटी खोलियाँ, दर्द की गोलियां,

पिक्चर में फुगलियाँ, ज़िन्दगी की गूगलियाँ

लोगो की चुगलियां, नचाती उँगलियाँ,

ये अच्छा नहीं लगा 

दो मिनट बोलकर घंटे लगते हो,

थे तुम बेवफाई की चौखट पर, बहाना ट्रैफिक का बताते हो,

ट्रैफिक सिग्नल ने आवाज़ दीबहुत खूबबहुत खूब।

 

आँखों में आँखे डाल कर झूठ सब बताते हो,

सवाल पूँछू इससे पहले, गले से लगाते हो,

धोखे ने आवाज़ दी, – बहुत खूबबहुत खूब।

 

अपना नाम अपना काम, ठाटबाट तुम दिखाते हो,

माँगू जो चंद रुपये, तो बटुआ छुपाते हो,

तिजोरियों ने आवाज़ दीबहुत खूबबहुत खूब।

 

बारिश में भीग कर, आंसू छुपाते हो,

सूरज के निकलते ही, मुस्कुराते जाते हो,

आँखों ने आवाज़ दीबहुत खूबबहुत खूब।

 

कभी इश्क़ फरमाते हो, कभी सौत बन कर आते हो,

जीवन की तलाश में, मौत को गले लगाते हो,

यमराज ने आवाज़ दीबहुत खूबबहुत खूब।

 

दूसरो की ख्वाईशो को, दफन करके आते हो,

उनसे आयाशी कर, नशे में चूर हो जाते हो,

शराब ने आवाज़ दीबहुत खूबबहुत खूब।

 

आज मुझसे कल उससे, हाथो को मिलाते हो,

दोनों से एक जैसे वादे करके जाते हो,

राजनीति ने आवाज़ दीबहुत खूबबहुत खूब।

 

खुद की तालीम बताने, फ़र्ज़ी डिग्रियां बनवाते हो,

उस व्यर्थ कागज़ के पीछे, खून पसीना बताते हो,

शिक्षा ने आवाज़ दीबहुत खूबबहुत खूब।

 

कैफ़े में बैठ कर क्लास की अटेंडेंस लगवाते हो,

और परीक्षा से ठीक पहले, परचा लेकर आते हो,

एग्जामिनर ने आवाज़ दीबहुत खूबबहुत खूब।

 

बिना गिरेबान में झांके, ऊँगली दूसरो पर उठाते हो,

अपनी चोरी का इलज़ाम दूसरो पर लगाते हो,

कोतवाल ने आवाज़ दीबहुत खूबबहुत खूब।

गर्मियों की शाम में माँ घूमने निकला करती थी,

पर कौन क्या पूँछ ले इस बात से वो डरती थी।

मीठी मीठी बातो से लोग ताने मारा करते थे,

क्या चल रहा परिवार में, बस इतना पूछा करते थे,

तो जब तक उनकी नज़रो में मै बड़ा नहीं हो गया,

मेरी माँ ने घर से बाहर निकलना ही छोड़ दिया।

 

गर्मिया तो तब भी कड़क थी, गर्मिया आज भी कड़क है,

मेरी माँ तब भी अलग थी, माँ मेरी सबसे अलग है।

 

होली की घडी थी,

माँ सड़क पर रंग लेकर खड़ी थी,

सबसे मिलूंगी, इस बात की खुशी खासी थी,

पर माँ को वह देख कर बाकियों में उदासी थी।

माँ समझ गयी और वापस गयी,

मायूसी एक उसके चेहरे पर छा गयी।

त्योहारों से माँ ने तबसे नाता ही तोड़ लिया,

होली का रंग माँ ने खेलना ही छोड़ दिया।

 

घर के सामने तब भी सड़क थी

घर के सामने आज भी सड़क है।

मेरी माँ तब भी अलग थी, माँ मेरी सबसे अलग है।

 

गुज़रे ऐसे कई फ़साने,

देखे ऐसे कितने अफ़साने,

पर किस्मत कब तक कलटेगी माँ

देखना एक दिन पलटेगी माँ

मेरे नए मिज़ाज़ के शहर में,

काम होता बेधड़क है माँ

तेरा बन्दा सोच समझ में,

थोड़ा तो अलग है माँ

थोड़ा तो अलग है माँ।

नींद समय पर आती है,

ना याद किसी की सताती है,

संयम है मेरे भीतर अब,

ना हदें पार कर पाती है।

उठा लिया है खुद का भार,

विजय अभियान अब ज़ारी है।

राजगद्दी कुर्बान करो,

अब मेरे राज़ की बारी है।

 

मै चुप बैठा वो हुंकार भरे,

की विनती तो ललकार पड़े,

मै अंदर बाहर एक सामान,

वो एक से एक कलाकार बने।

तो युद्ध बुद्ध अब साथ रहेंगे,

मेरी कलम तेज़ तलवारी है,

राजगद्दी कुर्बान करो,

अब मेरे राज़ की बारी है।

 

शतरंज के माफिक चाल चले,

छूरा पीछे डाल चले,

एक मित्र रहा जो मित्र नहीं,

अब उसके पीछे काल चले।

छोटा मोटा पासा नहीं,

खेलनी लम्बी पारी है

राजगद्दी कुर्बान करो,

अब मेरे राज़ की बारी है।

 

शुद्ध जल और राज भोग,

ये खाना सारा मेरा होगा।

रानी भी अब मेरी होगी,

राणा भी अब मेरा होगा

कलम, किताब और किस्से मेरी,

संपत्ति यही अब सारी है।

राजगद्दी कुर्बान करो,

अब मेरे राज़ की बारी है।


मेरी फैसले तूने काटी,

मेरी छत तेरी चौपाटी,

खुले अंग पर तेरी लाठी,

बोटी बोटी बाटी बाटी,

सिर्फ दिन ही नहीं अब तो,

राते भी तेरी भारी है,

राजगद्दी कुर्बान करो,

अब मेरे राज़ की बारी है।

कल की तलाश में, आज मेरा खो गया,

मेरी रूह को जगा कर, खुदा मेरा सो गया,

उसको आखिरी सलाम कह, दिल मेरा रो गया,

फिर अकेला होने, का खौफ मुझे छू गया,

कल की तलाश में, आज मेरा खो गया।

 

कोई शिकवा नहीं उससे, बिना मिले जो गया,

आँखे गीली तो गया, मुस्कुराया तो गया,

ली मैंने ये शपथ, की जो गया, सो गया,

कल की तलाश में, आज मेरा खो गया,

ये सारा कड़वा सार मुझको, भीतर तक धो गया,

अकेला कुछ एक नहीं, जो गया वो दो गया,

 

उम्मीदें टूट गयी, भरोसा टूट गया,

सच गया झूठ गया, ईमान ज़मीर रूठ गया,

सामान गया, अभिमान गया,

आत्म सम्मान गया,

क्रोध मेरा नरम हुआ,

भावनाएँ ख़त्म हुई,

स्वप्न है ढलान पे,

नफ़रतें गरम हुई,

इंसानियत चूक गयी,

हैवानियत थूक गयी,

अग्नि आवेश में,

कैफियत फूंकी गयी,

संन्यास का बीज मै, खुदखुद बो गया,

कल की तलाश में, आज मेरा खो गया

हो आवाम बगल में,

और मै फलक पे,

यह सपना एक दिखावा है,

यही हकीकत, यही है ख्वाब,

यही बात पछतावा है।

 

जो दिखता है वह बिकता है,

यह खाक छनी सचाई है,

और जो हो अद्रिश्य एकांत में अपने,

वो इस दौर में कड़वा कावा है।

 

यही हकीकत यही है ख्वाब,

यही बात पछतावा है 

 

इश्तेहार के जमाने में भी,

 तालीम नज़र में आना है,

लंबे लेख आलेख यहाँ,

सब कुछ फ़र्ज़ीवाड़ा है।

 

यही हकीकत यही है ख्वाब

यही बात पछतावा है।

 

लाइक, शेयर या कमेंट की बटने,

कामयाबी अब दर्शाती है,

जो वंचित हो इनके प्रेम से,

वो आवारा बेकार नाकरा है।

 

यही हकीकत यही है ख्वाब

यही बात पछतावा है।

किसी की सिफारिश में,

शायरी की गुज़ारिश है,

मै कहानी भी सुनाऊंगा,

तुम सुनो तो सही।

 

वक़्त थोड़ा ज़्यादा लूंगा,

चाय का एक प्याला लूंगा,

एक पैकेट बिस्किट का,

तुम खिलाओ तो सही।

 

पूर्णिमा की रात थी,

किस करने की बात थी,

चिट्ठी लिख कर वो बोली,

तुम आओ तो सही।

 

इलाका थोड़ा नीचे था,

अस्पताल के पीछे था,

खुद को मैंने दी तसल्ली,

एक बार जाओ तो सही।

 

सड़के सुनसान थी,

गालियां वीरान थी,

चांदनी की चाँद में,

रात वो हैवान थी,

सब वहाँ से जा चुके थे,

रात के पंछी चुके थे,

अलग अलग आवाज़ों के,

गीत सारे गा चुके थे।

 

लम्हा लम्हा शीत गया,

घंटा अरसा बीत गया,

इंतज़ार उस रात की,

सारी बाज़ी जीत गया।

 

मिलने मुझसे नहीं वो आयी,

कैसी थी ये बेवफाई,

रो देता मै इससे पहले,

दिख गयी मुझको परछाई।

 

मै दीवाना पीछे पलटा,

इससे पहले आगे चलता,

मानो जंजीर ने खींचे मेरे कदम,

और माज़रा पड़ गया सारा उलटा।

 

होंठ जो देखो लाल थे मेरे,

सूखे सूखे गाल थे मेरे,

मै बस किस करने को आया था,

अब कैसे कैसे हाल थे मेरे।

 

तन मन में मेरे साँप पड़े थे,

होर्मोनेस अपने आप लड़े थे,

प्राण पखेरू उड़ गए मेरे,  

क्योंकि पीछे मेरे बाप खड़े थे।

वो अनोखा शख्स जिसकी तरफ मै खींचा चला गया,

मेरी वो परिस्तिथि जो टूट जाने बाद होती है, वो हालात जो इश्क़ में टूट जाने बाद होते है, छोटी मोटी नोंकझोंक जो मुस्कराहट बनाये रखती है, लोगो से वो शिकायते जो हर युवा वर्ग करता है, झूठ बोलने की कला जो हर किसी में है, ऐसी बातो को कविताओं का आकार देते समय ऐसा लगा मानो कुछ गुज़रे पल मै वापस जी रहा हूँ। उम्मीद है की आपको भी इसका एहसास करवा सकूँ।

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Amritansh Tiwari

Anchor, Public Speaker

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